सारंगढ़

होली का अर्थ बसंत की अथाह ऊर्जा का हर्ष है…

सारंगढ़। ये ऊर्जा पूरे भारत वर्ष में प्रवाहित हो रही है, होली प्रतीक है । नव ऊर्जा, नवसृजन का,हमारी भौतिक शक्ति के स्पंदन का,विविध सामाजिक रंगों की एकता का, होली प्रतीक है द्वेष, बैर, क्लेश के दमन का, स्नेह, मैत्री मिलन के उन्नयन का, मनुष्य में मनुष्यता के भाव की प्रबलता का, नकारात्मक शक्तियों के दमन का, होली प्रतीक भारत की सामाजिक एकता का, हास्य-प्रमोद -विनोद को जीवन में उतारने का, रंगों के माध्यम से प्राकृतिक विविधता को पहचानने का, होली प्रतीक है,साहित्य के लोक से जुड़ने का, प्राकृतिक तरंग के संगीत का,गंभीर विमर्श में विनोद की लहरों के उठने का,होली अवसर है ऋतु बसंत का और माह फाग का,चैत्र के आने की सुगबुगाहट का, फसलों के परिपक्व होने का,पेड़ों में पुष्पों के आने का,होली सुअवसर है,हर रंग में प्रकृति के किसी एक अंग की पहचान का,रंगो की तरह आपस में घुल मिलकर बहुरंगी व्यक्तित्व बनाने का,होली सुअवसर है,अपने पुराने साथियों से पुनः संपर्क स्थापित करने का, कड़वाहट की आहट को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा से आपसी संबंधों को संपन्न करने का,होली सुअवसर है नगर वासियों का सड़कों पर प्रेम और सौहार्द बांटने का,होली रंग से अधिक उमंग की होती है, प्रकृति में बसंत की उमंग और हम सभी में सकारात्मक ऊर्जा की उमंग,होली केवल एक पर्व भर नहीं है,होली हमारे इतिहास की वो सुनहरी किताब है,जिसका हर एक पन्ना हमारे पुरखों के रंगों से रंगा हुआ है,होली की कथा सनातन के हर आराध्य से जुड़ती है,देवों के देव महादेव महाश्मशान में भस्म से होली खेलते हैं और ऐसा खेलते हैं कि लोग अनादिकाल से गाते आ रहे हैं कि – दिगंबर खेले मसाने में होली,हमारे राम ने अवध में होली खेली और ऐसी होली खेली की सभी आज तक यादकर गुनगुनाते हैं कि – होली खेले रघुबीरा अवध में,होली खेले रघुबीरा ।

भगवान कृष्ण की तो बात ही क्या कहें , उन्होंने तो गोकुल में ऐसी होली मनाई की होली गीत उठाकर देख लीजिये, 80 प्रतिशत गाने कृष्ण पर ही लिखे गए हैं , आज हम अपने अग्रजों को रंग लगाया था, कल को हमारी संतान हमको रंग लगाएंगे और यह क्रम अनवरत चलता रहेगा, बात बहुत पुरानी है,पर ऐसी ही किसी फगुआ को भगवान श्रीराम ने भी उतने ही प्रेम से गुलाल लगाया होगा और भगवान श्री कृष्ण भी अपने मथुरा में ऐसे ही गोपियों के साथ रंग खेले होंगे, हम उतने पुराने हैं,की हमारी परम्पराओं को किसी व्यक्ति ने नहीं, समय ने गढ़ा है,यह एक या दो पीढ़ी में नहीं बनीं,जो एक या दो पीढ़ी में समाप्त हो जाएंगी, हमारी परम्पराएं सहस्त्राब्दियों में स्वतः विकसित हुई हैं,ये विलुप्त नही होगी,रूप बदल सकता है,रंग बदल सकता है,ढंग बदल सकता है, इनकी आत्मा नहीं बदलेगी,यही भारत है,यही सनातन है,यही हम हैं,भारतीय परंपरा के महान पर्व होली पर अपने मनोमालिन्य, दुष्प्रवृत्तियों को आसन्न संकट रूपी बीमारियों के साथ भस्मीभूत कर विविध रंगों में आनंदित रहकर,अपने परिवार व मित्रों सहित स्वस्थ, सुदीर्घ, समृद्ध शाली एवं यशस्वी जीवन यात्रा में कुछ क्षण समाज के लिए भी रखें,बना रहे भारत, बनी रहे संस्कृति,बनी रहे परम्परा, बनी रहे होली,होली की आप सभी को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं ।

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